कोविड की खतरनाक दूसरी लहर के बीच डॉ. वरुण कुमार करोना के मरीज़ों के साथ उनकी ढाल बन खड़े हुए और अपनी बेहतर चिकित्सा और सेवा के जरिए आने वाली हज़ारों मौतों को पीछे धकेल दिया | कई प्रमुख संगठनों द्धारा कोरोना वारियर अवार्ड से सम्मानित डॉ. वरुण कुमार कहते हैं की सीतामढ़ी स्थित हमारा अस्पताल कोविड के मरीज़ों के लिए दिन रात काम कर रहा था और अपनी पूरी ज़िन्दगी में मैंने ऐसा भयानक मंज़र पहले कभी नहीं देखा था | बस एक ही संकल्प था की अपनी जान की परवाह किये बगैर लोगों की ज़िन्दगियों को बचाना है,और शायद हम उसमे सफल भी रहे |
बिहार की नेपाल सीमा पर स्थित सीतामढ़ी ज़िले में नंदीपत हॉस्पिटल के संचालनकर्ता जनरल एवं लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. वरुण कुमार डॉक्टर वरुण कुमार सीतामढ़ी और उसके आसपास के ज़िलों में ही नहीं , पडोसी देश नेपाल तक गोली लगने से घायल हुए लोगों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं | 2009 में किराए के कमरे से छोटी सी शुरुआत कर और कई सालों तक संघर्ष करने के बाद 2014 में नंदिपत हॉस्पिटल के जरिए इन्होने कामयाबी हासिल की | 2014 से पहले तक इस इलाके में गोली से घायल हुए लोगों के इलाज के लिए कोई सुविधा नहीं थी और उन्हें मुजफ्फरपुर या पटना का रुख करना पड़ता था लेकिन अब डॉ. कुमार ने इस कमी को दूर कर दिया है | डॉ. वरुण ने अबतक गोली लगने से घायल हुए 100 से अधिक लोगों के शरीर से सैकड़ों गोलियां निकालकर उन्हें ज़िन्दगी का वरदान दिया है | सीतामढ़ी में शिक्षा में सुधार को ध्यान में रखकर डॉ. वरुण ने शहर के लगमा इलाके में डी पी एस इंटरनेशनल स्कूल की भी स्थापना की है जिसमे बच्चों के लिए 10 + 2 तक की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था है |
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र से एन डी ए (जदयू ) द्धारा डॉ. वरुण को प्रत्याशी बनाया गया लेकिन चिकित्सा के प्रति समर्पित डॉ. वरुण ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया |