बिहार के गया शहर के मुरारपुर स्थित चाइल्ड हॉस्पिटल के निदेशक और बिहार के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. क्रांति किशोर ने अपने ज्ञान और मिलनसार स्वभाव की बदौलत बेहद कम वक़्त में जो शोहरत हासिल की है वो बेमिसाल है |
डॉ. क्रांति किशोर को पटना के कुर्जी स्थित होली फैमिली हॉस्पिटल से काम का ऑफर मिला और डॉ. किशोर ने इस मिशनरी अस्पताल में बतौर जॉइंट रजिस्ट्रार अपना योगदान दिया | पटना के कुर्जी स्थित इस अस्पताल में कुछ महीने काम करने के उपरान्त डॉ. किशोर सीतामढ़ी के रुन्नी सैदपुर आ गए और अपनी निजी प्रैक्टिस आरम्भ की लेकिन 3 महीने बाद डॉ.क्रांति मुजफ्फरपुर चले आये और एक छोटी सी क्लिनिक की शुरुआत की लेकिन 2009 में बिहार के गया स्थित प्राइमरी हेल्थ सेंटर से इन्हे नौकरी का ऑफर आया और परिवार की सलाह पर डॉ. क्रांति गया आ गए और पीएचसी में अपना योगदान दिया और इसके अगले ही साल 2010 में इनका तबादला डेप्युटेशन पर गया मेडिकल कॉलेज , गया में कर दिया गया और इस अस्पताल में 5 महीने तक अपनी सेवाएं देने के उपरान्त डॉ.क्रांति वापस प्राइमरी हेल्थ सेंटर चले आये और इसके अगले ही साल 2011 में डॉ. क्रांति किशोर ने सरकारी नौकरी छोड अपनी निजी प्रैक्टिस करने का मन बनाया |
डॉ. किशोर के पिता किशोरी रमन प्रसाद अपने पुत्र डॉ. क्रांति से कहा करते थे की इंसान चाहे जिस किसी भी प्रोफेशन से जुड़ा हो उसमे दही की तरह जमने के गुण होने चाहिए यानी हम जो भी कार्य करें उसमे पूरी निष्ठा से साथ अपना शत प्रतिशत दे तो यकीनन तस्वीर बदल सकती है | जनवरी 2010 में डॉ.क्रांति किशोर ने गया में अपनी निजी क्लिनिक की शुरुआत तो कर दी लेकिन विधिवत रूप से इसका विस्तार साल 2011 में नौकरी छोड़ने के उपरान्त हुआ और फिर डॉ. क्रांति किशोर ने कभी पलट कर पीछे नहीं देखा | वक़्त के कैलेंडर पर दिन, महीने और साल बदलते गए और बदलते समय के साथ अपनी कड़ी मेहनत के दम पर डॉ. किशोर ने वो सब कुछ हासिल किया जो किसी चिकित्सक का सपना होता है यानी मरीज़ों का प्यार ,विश्वास और कठिन परिश्रम के बुते मिली शोहरत