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राजस्‍थान के एक गांव से खाली हाथ निकला एक परिवार हजारों किलोमीटर दूर बिहार आकर मात्र एक पीढ़ी के अंदर सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ दे ऐसा कम ही होता है मगर बिहार के अशोक अग्रवाल ने ऐसा कर दिखाया है। अशोक अग्रवाल ने कड़ी मेहनत से न सिर्फ अपनी और अपने परिवार की जिंदगी संवारी बल्कि अब वो समाज को भी उसका हिस्‍सा लौटा रहे हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। खास बात ये है कि जिंदगी में सफलता के कई आयाम हासिल करने वाले अशोक अग्रवाल ने ग्रेजुएशन भी नहीं किया है। यानी उन्‍होंने ये साबित किया है कि कारोबारी और सामाजिक सफलता उच्‍चतर डिग्रियों की मोहताज नहीं होती।

ये कहानी शुरू होती है अशोक अग्रवाल के पिता रतनलाल अग्रवाल से जो कि मूलत: राजस्‍थान के जयपुर के निकट कोट पुतली पाउटा गांव के रहने वाले थे। रतनलाल अग्रवाल के पिता भूरामल अग्रवाल का नाम गांव के बड़े जमींदारों में शामिल था मगर अचानक स्थितियां बिगड़ गईं और रतनलाल अग्रवाल को अपनी रोटी खुद कमाने के लिए अपनी जमीन से दूर होना पड़ा। आजादी के बाद का दशक था और रतनलाल जीविकोपार्जन के लिए 1958 में बिहार के पटना पहुंच गए। यहां 1959 में कंकड़बाग इलाके में उन्‍होंने शिव किराना भंडार के नाम से अपनी किराने की दुकान शुरू की। कंकड़बाग में ही साल 1972 में अशोक अग्रवाल का जन्‍म हुआ। चार भाई और चार बहनों में अशोक सबसे छोटे थे और इतने बड़े परिवार का खर्च चलाने के लिए अशोक को भी सिर्फ छह साल की उम्र में पिता का हाथ दुकान में बंटाना पड़ा। इससे उनमें कारोबार के गुण बचपन से ही विकसित हो गए।